Friday, February 5, 2010

जूनी कचहरी

मैं जूनी कचहरी हूं। पाली पर दो सौ वर्ष तक शासन करने वाले सोनगरा वंश के अखेराज की पुत्री जयवंतीदेवी के पुत्र महाराणा प्रताप का जन्म मेरे आंचल पर ही हुआ था। विक्रम संवत 1597 ज्येष्ठ सुदी तीज [9 मई, 1540 ईस्वी] रविवार को सूर्योदय से 47 घड़ी 13 पल का वह समय भुलाए नहीं भूलता। ऐतिहासिक दस्तावेज और समकालीन घटनाएं आज भी इसकी गवाह है। कुछ समय पहले तक कुछ इतिहासकार प्रताप की जन्मस्थली मेवाड़ में बताते थे, लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्यों और प्राचीन पुस्तकों के आधार पर उन्हें भी यह मानने को मजबूर होना पड़ा कि प्रताप मेरी गोद में जन्में। प्रताप अपनी माता की पहली संतान थे। पुरातन मान्यताओं के मुताबिक पहली संतान का जन्म महिला [माता] के पीहर में होता है। जयवंतीदेवी का पीहर मेरे मालिक अखेराज सोनगरा के यहां था। इसलिए, प्रताप ने यहां जन्म लिया और मेरी गोद में बचपन बिताया। पुराने शहर की तंग संकरी गलियों से होते हुए धानमंडी के भीतरी इलाके में बसी होने के कारण मुझ पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। कंक्रीट के जंगल में मेरी स्थापत्य कला लगभग खत्म हो रही है। त्याग, समर्पण, बलिदान, वीरता, साहस और शौर्य की प्रतिमूर्ति महाराणा प्रताप की जन्मस्थली का गौरव प्राप्त होने के बावजूद मुझ पर न तो पुरातत्व विभाग वालों की नजर पड़ी है और न ही जिला प्रशासन ने मेरी दीवारों से गिर रहे चूना पत्थर को सहेजने की कोशिश की है। कुछ सालों से मेरी सोलहवीं पीढ़ी मुझे बचाने के लिए हाथ-पैर मार रही है, लेकिन मेरे विकास की दिशा में अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाया है।
उदयपुर की महाराणा प्रताप स्मारक समिति की ओर से प्रकाशित 'महाराणा प्रताप एंड हिज टाइमÓ स्मारिका में 'बंगाल के साहित्यकारों का महाराणा के प्रति दृष्टिïकोणÓ शीर्षक से प्रस्तुत आलेख में डॉ. सुनंदा भट्टाचार्य ने डॉ. कानूनगो के संदर्भ से स्वीकार किया कि 'शिवाजी और शेरशाह की तरह महाराणा प्रताप में भी अपने पिता से बचपन में अवहेलना और उपेक्षित व्यवहार पाया था। वे विमाता की ईष्र्या के शिकार भी थे।Ó इतना ही नहीं, उम्र में छोटा होने के बावजूद रानी भटयाणी ने अपने पुत्र जगमाल को उदयसिंह को उत्तराधिकारी बनवा दिया। डॉ. तेजकुमार समेत कई अन्य इतिहासकारों के संदर्भित ग्रंथों से इस तथ्य की पुष्टिï होती है। [बाद में तत्कालीन मेवाड़ के हित में जगमाल को हटाकर प्रताप को ही उत्तराधिकारी बनाया गया।] सत्ता हथियाने के इस राजनीतिक खेल में सुरक्षात्मक कारणों से भी महाराणा प्रताप का जन्म जयवंती देवी के पीहर [पाली] में होना माना जाता है। वैसे भी, सुरक्षा कारणों के मदद्ेनजर 'इतिहास अपने आप को दोहराता सा लगता हैÓ। प्रताप के पिता उदयसिंह को भी राजमहलों की राजनीति के बीच पन्नाधाय ने असीम स्वामीभक्ति का परिचय देकर बचाया। संभव है, रानी जयवंतीदेवी भी किसी संभावित बनवीर के आने से पहले ही, सावधान होकर पीहर [पाली] चली आई हो। जयवंतीदेवी की एक बहिन और अखैराज की दूसरी पुत्री का विवाह बीकानेर नरेश रायसिंह के साथ हुआ था। सोनगरा व सांचौरा चौहानों के इतिहास के मुताबिक 'डिंगल भाषा के प्रसिद्ध विद्वान पीथल [पृथ्वीराज] का जन्म इन्हीं से हुआ। इस लिहाज से पीथल और प्रताप मौसेरे भाई हुए।Ó बहुत संभव है कि दोनों बचपन में अपने ननिहाल पाली में साथ रहे। पीथल की ओर से प्रताप को खत लिखने की घटना से भी इस तथ्य को बल मिलता है। यह भी पाली और प्रताप के रिश्ते को प्रतिबिम्बित करता है।

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