Thursday, February 4, 2010

जरा सोचें!
rohit pareek
यह वह सत्य है, जिसे जानकर एक संवेदनशील व्यक्ति का फ्रिकमंद होना लाजिमी है। जीते जी इंसान को भले ही सुविधाएं न मिलें, लेकिन जीवन के आखिरी सफर में 'मिट्टीÓ के समय सुविधाओं का अभाव मन को सालता है। जिंदगी की आखिरी दहलीज पर हर इंसान की यह ख्वाहिश हो सकती है कि उसे मरते समय तो कम से कम सुकून जरूर मिलें। जिक्र हो रहा है पाली शहर के श्मशानों और कब्रिस्तानों का। इन्हें करीब से देखें, स्थिति खुद-ब-खुद साफ हो जाएगी। ऐसा नहीं है कि कोई संगठन या मंडल इस ओर ध्यान नहीं दे रहा। कुछ नामी मंडल है, जो श्मशान घाट पर सुविधाओं के नाम पर खास तवज्जो दे रहे हैं और उनका काम दिख भी रहा है। बावजूद इसके, बहुत-से श्मशानों पर कही पानी और लकड़ी की कमी है, तो कही दफनाने के लिए जगह ही नहीं है। कई समाजों के खुद के श्मशान है, लेकिन एक बहुत बड़ा वर्ग अब भी अंतिम सफर के लिए हिन्दू सेवा मंडल के श्मशानों की मदद लेता है। मंडल इन दिनों लकड़ी की समस्या से जूझ रहा है। मंडल के मौजूदा प्रबंधों और प्रशासनिक स्तर पर हो रही कोशिश से यद्यपि लकड़ी मिल भी रही है, लेकिन मंडल के श्मशानों में होने वाले दाह के आंकड़ों के सामने यह मात्रा कम साबित हो रही है। सिर्फ लकड़ी ही नहीं, कही अंत्येष्टि में शामिल होने वाले लोगों के पीने के पानी की व्यवस्था नहीं हैं, तो कही उनके बैठने के लिए स्थान। बता दें कि शहर लगातार विस्तार ले रहा है। आबादी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रही है। ऐसे में एक पहलू यह हो सकता है कि श्मशान और कब्रिस्तान बहुत सालों पहले बने और उनकी चारदीवारी एक दायरे में सिमट गई।
कब्रिस्तानों की मिट्टी में निकल रहे कंकाल और हड्डियों को देखकर किसी भी कमजोर दिलवाले व्यक्ति की आंखों से आंसू निकल सकते हैं। मुर्दे को दफनाते समय यहां यह अहसास होने लगा है कि कब्रिस्तानों की मिट्टी में अब जगह कम पड़ रही है। श्मशान और कब्रिस्तानों की चारदीवारी कंकरीट के जंगल में सिमट चुकी है। अब इनका विस्तार नहीं हो सकता, लेकिन शहर के बाहरी इलाकों में नया स्थान आरक्षित कर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
शहर के आधे से अधिक इलाके के बाशिन्दों को कब्रिस्तानों के लिए काफी लम्बा सफर तय करना पड़ रहा है। ऐसे इलाकों में भूमि की समस्या का समाधान जरूरी है। सोचने का समय निकल चुका है, फिर भी अभी देर नहीं हुई है। गीता के श्लोक और कुरान की आयतें यह अहसास दिलाने के लिए काफी है कि इंसान एक माटी का पुतला है, जो इसी मिट्टी में जन्मा है और यही खत्म भी हो जाएगा। वह दुनिया में खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही जाएगा!

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